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निर्दयता, अहंकार, अतिलोभ, कठोर भाषण और नीचवस्तु पर प्रीति रखना ये पांच लक्ष्मीके साथ निरंतर रहते हैं, ऐसा एक वचन प्रसिद्ध है, परन्तु वह सज्जनपुरुषोंको लागू नहीं होता. हलके स्वभावके मनुष्योंको लक्ष्य करके ऊपरका वचन प्रवृत्त हुआ है. इसलिये ज्ञानीपुरुषोंने अधिकाधिक द्रव्य आदि मिलने पर भी अहंकार आदि न करना चाहिये। कहा है कि--
विपदि न दीनं संपदि न गर्वितं सत्यथं परव्यसने । हृष्यति चात्मव्यसने येषां चेतो नमस्तेभ्यः ॥१॥ जं जं खमइ समत्थो, धणवतो जं न गविओ होइ । जं च सविज्जो नमिओ, तिहिं तेहि अलंकिआ पुहवी ॥२॥
जिन सत्पुरुषोंका चित्त आपत्ति आने पर दीन नहीं होता, संपदा ( लक्ष्मी) आने पर अहंकारको प्राप्त नहीं होता, दूसरोंका दुःख देखकर दुःखी होवे, और स्वयं संकटमें होने पर भी हर्षित होवें, उनको नमस्कार है । सामर्थ्य होते हुए दूसरोंके उपद्रव सहन करे, धनवान होकर गर्व न करे तथा विद्वान होकर भी विनय करे, ये तीनों पुरुष पृथ्वीके श्रेष्ठ अलंकार हैं । विवेकीपुरुषने किसीके साथ स्वल्पमात्र भी क्लेश न करना, जिसमें भी बडे मनुष्योंके साथ तो कभी भी न करना. कहा है कि--जिसे खांसीका विकार होवे उसने चोरी नहीं करना, जिसे अधिक नींद आती हो उसने व्यभिचार न