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संकोचना ) प्रसारित ( अंग प्रसारना ), रेचक, आरचित, भ्रांत ( बहकना ) संभ्रांत ( अत्यंत बहकना ), यह उत्पाता - दिनृत्यनामक इकतीसवां भेद [ ३९ ] तीर्थंकरादि महापुरुषोंके चरित्रका अभिनय करना यह बत्तीसवां भेद [ ३२ ]. इस प्रकार राय सेणीसूत्रमें बत्तीसबद्धनाटकके भेद कहे हैं ।
इस भांति राजा आदि ऋद्धिशाली श्रावक जिनमंदिरको जावे । परन्तु जो साधारण ऋद्धिवन्त हो, उसने तो लोकपरिहास टालने के निमित्त अहंकारका त्याग कर अपने कुल तथा द्रव्यके उचित आडंबर रख, भाई, मित्र, पुत्रादिक परिवारको साथ लेकर जिनमंदिरको जाना। वहां जाने में ( १ ) फूल, तांबूल, सरशव, दूर्वा (दूध ), तथा छरी, पादुका, मुकुट, वाहनप्रमुख सचित्त और अचित्तवस्तुका त्याग करे | यह प्रथम अभिगम है । ( २ ) मुकुटको छोड़कर शेष अलंकार आदि अचित्तद्रव्यका त्याग न करे यह दूसरा अभिगम हैं ( ३ एक ( बिना जोडका ) तथा चौडे वस्त्रसे उत्तरासंग करे, यह तीसरा अभिगम है । ( ४ ) भगवान को देखने पर दोनो हाथ जोड " णमो जिणाणं " यह कहता हुआ वंदना करे, यह चौथा अभिगम है । (५) मनको एकाग्र करे, यह पांचवां अभिगम है। ऐसे पांच अभिगम पूर्ण करे तथा निसीही करके जिनमंदिरमें प्रवेश करे । इस विषय में पूर्वाचार्यों का वचन इस भांति है:- सचित्तद्रव्यका त्याग करने से (१), अचित -