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इसी प्रकार कुलत्थे और मासे भी जानो उसमें इतनी ही विशेषता है कि, मास तीन प्रकारका है. एक कालमास ( महीना ), दूसरा अर्थमास ( सोने चांदीका तौल विशेष ) और तीसरा धान्यमास ( उड़द )
इस भांति थावच्चापुत्रआचार्यने बोध किया, तब अपने हजार शिष्योंके परिवार सहित शुकपरित्राजकने दीक्षा ली. थावच्चाचार्य अपने एक हजार शिष्यों सहित शत्रुंजय तीर्थ में सिद्धिको प्राप्त हुए | पश्चात् शुकाचार्य शेलकपुरके शेलक नाम राजाको तथा उसके पांचसौ मंत्रियोंको प्रतिबोध कर दीक्षा दे स्वयं सिद्धिको प्राप्त हुए । शेलकमुनि ग्यारह अंगके ज्ञाता हो अपने पांचसौ शिष्योंके साथ विहार करने लगे। इतने में नित्य रूखा आहार करनेसे शेलक मुनिराजको खुजली (पामा ) पित्त आदि रोग उत्पन्न हुए. पश्चात् विहार करते हुए वे परिवार सहित शेलकपुरमें आये. वहां उनका गृहस्थाश्रमका पुत्र मड्डुक राजा था. उसने उनको अपनी वाहनशाला में रखे. प्रासुक औषध व पथ्यका ठीक योग मिलने से शेलक मुनिराज निरोग
१ 'कुलत्थ' शब्दमागधी है, 'कुलत्थ' (कुलथी) व 'कुलस्थ' इन दो संस्कृत शब्दों का 'कुलत्थ' ऐसा एकही मागधी में रूप होता है. २ 'मास' (महीना ), 'माप' ( उडद) और 'माप' (तौलनेका एक बाट ) इन तीनों शब्दोंका मागधी में 'मास' ऐसा एकही रूप होता है.