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(३९९) अभय रखा गया. लोगोंमें वह 'आभड' नामसे प्रख्यात हुआ. पांचवर्षका होने पर उसे पाठशालामें पढनेको भेजा. एक दिन सहपाठी बालकोंने इसे उपहाससे 'नवापा, नवापा" ( बिना बापका ) इस तरह चिढाया. उसने घर आते ही आग्रह पूर्वक माताको पिताका स्वरूप पूछा. माताने सब सत्य वृत्तान्त कह सुनाया. तदनन्तर आग्रह व प्रसन्नता पूर्वक आभड पाटणको गया तथा वहां व्यापार करने लगा. यथासमय उसने लाछलदेवी नामक कन्यासे विवाह किया. पिताका गाडा हुआ द्रव्यआदि मिलनेसे वह भी कोटिध्वज होगया. उसके तीन पुत्र हुए.
समय जाते बुरे कर्मोंके उदयसे वह निर्धन होगया. उसने स्त्रीको तीनों पुत्रों सहित उसके पियर भेज दि और आप एक मनिहारेकी दुकान पर मणिआदि घिसनेके काम पर रहा. उसे कुछ जब मिलते थे. उन्हें स्वयं ही पीसकर तथा पकाकर खाता था. लक्ष्मीकी गति कैसी विचित्र है ? कहा है कि--
वाधिमाधवयोः सौधे, प्रीतिप्रेमाङ्कधारिणोः । या न स्थिता किमन्येषां, स्थास्यति व्ययकारिणःम् ? ॥१॥
जो लक्ष्मी स्नेहपूर्वक गोदमें बैठानेवाले समुद्रके तथा कृष्णके राजमहल में स्थिर न रही वही लक्ष्मी अन्य खर्चीले लोगोंके घरमें किस प्रकार स्थिर रह सकती है ? एकसमय श्रीहेमाचार्यजीके पाससे परिग्रह परिमाण व्रत लेनेके लिये आभड