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दान आदि विधि करके चढाना. वहां सर्व लोगोंने शक्तिके अनुसार पहिरामणी रखना. पश्चात् भगवानके सन्मुख मंगल. दीप सहित आरतीका उद्योत करना. उसके पास अग्निपात्र (सिगडी ) रखना. उसमें नमक व जल डाला जावेगा।
उवणेउ मंगलं वो, जिगाण मुहलालिजालसंवलिया। तित्थपवत्तणसमए, तिअसविमुक्का कुसुमबुट्ठी ॥१॥ यह मंत्र कहकर प्रथम पुष्पवृष्टि करना. पश्चात्-- उअह पडिभग्गपसर, पयहिणं मुणिवई करेऊणं । पडइ सलोणत्तणलज्जिअं व लोणं हुअवहमि ॥ १ ॥
इत्यादि पाठ कहकर जिनेश्वर भगवानके ऊपरसे तीन फूल सहित लवण जल उतारना आदि करना. तत्पश्चात् आरती करना. वह इस प्रकार:-- आरतीक समय धूप खेना, दोनों दिशाओंमें ऊंची और अखंड कलशजलकी धारा देना. श्रावकोंने फूल बिखेरना. श्रेष्ठपात्रमें आरती रखकर,
१ तीर्थंकर की तीर्थप्रवृत्तिके अवसर पर शब्द करते भ्रमरोंके समुदायसे युक्त ऐसी देवताकी करीहुई पुष्पवृष्टि तुम्हारा मंगल करे ।
२ देखो, लवण मानो अपने लवणपनसे लज्जित हुआ और कोई उपाय न रहनेसे भगवान्को तीन प्रदक्षिणा देकर अग्निमें पडता है।