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नाथ ऐसे परमेष्ठिका नवकारको गिनना । यतिदिनचर्या में तो इस प्रकार कहा है कि, रात्रिके पिछले प्रहर में बाल, वृद्ध इत्यादि सब लोग जागते हैं, इसलिये उस समय मनुष्य प्रथम सात आठवार नवकार मंत्र कहते हैं । नवकार गिनने की यह विधि है ।
निद्रा लेकर उठा हुआ पुरुष मनमें नवकार गिनता हुआ शय्यासे उठ कर पवित्र भूमिपर खड़ा रहे अथवा पद्मासनादि सुखासन से बैठे। पूर्वदिशाको, उत्तर दिशाको अथवा जहां जिनप्रतिमा होवे उस दिशाको मुख करें, और चित्तकी एकाग्रता आदि होनेके निमित्त कमलबंध से अथवा हस्तजापसे नवकारमंत्र गिने । उसमें कल्पित अष्टदलकमलकी कर्णिका ऊपर प्रथम पद स्थापन करना, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, तथा उत्तर दिशा के दलपर अनुक्रमसे दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवां पद स्थापन करना, और अग्नि, नैऋत्य, वायव्य और ईशान इन चार उपदिशाओं में शेष चार पद अनुक्रमसे स्थापन करना । श्री हेमचन्द्रसूरिजीने आठवें प्रकाशमें कहा है कि, आठ पखडियोंके श्वेतकमलकी कर्णिकामें चित्त स्थिर रखकर वहां पवित्र सात अक्षर के मंत्र - ( नमो अरिहंताणं ) का चिन्तवन करना । ( पूर्वादि ) चारदिशाकी चारपखडियों में क्रमशः सिद्धादि चारपदका और उपदिशाओं में शेष चारपदका चिन्तवन करना । मन, वचन कायाकी शुद्धिसे जो इस प्रकार से एकसौ आठ बार मौन रखकर नवकारका चिन्तवन करे, तो भोजन करने पर भी