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(१४६) रागादिमय कुस्वप्न, द्वेषादिमय दुःस्वप्न तथा बुरे फलका देनेवाला स्वप्न इन तीनोंमें से पहिलेके परिहारके निमित्त एक सौ आठ श्वासोश्वासका काउस्सग्ग , करना । प्रतिक्रमण विधि आगे वर्णन करेंगे । व्यवहारभाष्यमें कहा है कि-- प्राणातिपात ( हिंसा ), मृषावाद ( असत्य वचन ), अदत्तादान ( चोरी ), मैथुन ( स्त्रीसंभोग ), तथा परिग्रह (धनधान्यादिकका संग्रह ) ये पांचों स्वप्नमें स्वयं किये, कराये अथवा अनुमोदन किया होवे तो पूरे सौ श्वासोश्वासका काऊ. स्सग्ग करना। मैथुन (स्त्रीसंभोग ) स्वयं किया होवे तो सत्ताइस श्लोक ( एकसौ आठ श्वासोश्वास ) का काउस्सग्ग करना । काउस्सग्गमें पच्चीस श्वासोश्वास प्रमाणवाला लोगस्स चार बार गिनना अथवा पच्चीसश्लोक प्रमाणवाले दशवैकालिकसूत्रके चौथे अध्ययनमें किये हुए पंचमहाव्रतका चिन्तवन करना अथवा स्वाध्यायके रूपमें चाहे कोई पच्चीस श्लोक गिनना । इस भांति व्यवहारभाष्यकी वृत्तिमें कहा है। प्रथम पंचाशककी वृत्तिमें भी कहा है कि-किसी समय मोहिनीकर्मके उदयसे स्त्रीसेवारूप कुस्वप्न आवे तो उसी समय उठकर ईर्यावहिपूर्वक प्रतिक्रमण कर एक सो आठ श्वासोश्वासका कास्सग्ग १ स्वप्नमें स्त्रीको भोगना अथवा अन्य कोई कामचेष्टा करन! उसे शास्त्रमें कुस्वप्न कहते हैं । २ स्वप्न में किसीके साथ वैर मत्सर करना अथवा किसी भी प्रकार द्वेष दिक प्रकट करना उसे दुःस्वप्न कहते हैं