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(१७८) भोजन तथा तांबूल आदि भक्षण करना, और पश्चात् विधिपूर्वक मुख शुद्धि करना, इस भांति एकाशन कर, उसे एकमासमें उन्तीस चौविहार उपवास करनेका फल प्राप्त होता है ।
" भुंजइ अणंतरेणं, दुन्नि उ वेराउ जो नियोगेणं । ___ सो पावइ उववासा, अट्ठावीसं तु मासेणं ॥१॥ वैसे ही उपरोक्त विधिके अनुसार रात्रिमें चौविहार पच्चखान और दिनमें बियासना करे तो उसे एक मासमें अट्ठावीस चौवि. हार उपवास करनेका फल प्राप्त होता है। ऐसा वृद्ध लोग कहते हैं । भोजन, ताम्बूल, पानी आदि वापरते नित्य दो दो घडी लगना संभव है, इस प्रकार गिनते एकाशन करनेवालेकी साठ घडी और बियासणा करने वालेकी एक सौ बीस घडी एक महीनेके अन्दर खाने-पीनेमें जाती है। वह निकाल कर शेष क्रमशः उन्तीस, अट्ठावीस दिन चौविहार उपवासमें गिनी जाना स्पष्ट है । पद्मचरित्रमें कहा है कि जो मनुष्य लगातार बियासणेका पच्चखान लेकर प्रतिदिन दो बार भोजन करे, वह एक मासमें अट्ठावीस उपवासका फल पाता है । जो मनुष्य दो घडी तक प्रतिदिन चौविहार पच्चखान करे. वह एक मासमें एक उपवासका फल पाता है, और उस (फल). को देवलोकमें भोगता है। किसी अन्य देवताकी भक्ति करने वाला जीव तपस्यासे जो देवलोकमें दशहजार वर्षकी स्थिति पावे, तो जिनधर्मी जीव जिनमहाराजकी कही हुई उतनी ही