________________
( १६६ )
वृष्टि पडते ही ग्राम, नगर इत्यादिक में जहां मनुष्यका अधिक प्रचार होता है, उस स्थान में पडा हुआ जल जब तक बहता नहीं तब तक मिश्र होता है । अरण्यमें तो जो प्रथम वृष्टिका जल पडता है, वह सब मिश्र और पीछेसे पडे वह सचित्त होता है । तंडुलोदक ( चावल का पानी ) तो तीन आदेश छोडकर बहुत स्वच्छ न हो तो मिश्र और बहुत स्वच्छ होवे तो अचित्त है । तीन आदेश इस प्रकार है
-
कोई कोई कहते हैं कि, तंडुलोदक जिस पात्र में चावल धोये हो, उस पात्रमें से दूसरे पात्रमें निकाल लेने पर धारासे टूट कर आसपास लगे हुए बिन्दु जब तक टिके रहें, तब तक मिश्र होता है । दूसरे यह कहते हैं कि, तंडुलोदक दूसरे पात्र में निकालते वक्त आये हुए पर्पोटे जब तक रहें, तब तक मिश्र होता है । तीसरे यह कहते हैं कि, जब तक धोये हुए चांवल पकाये न होवें, तब तक मिश्र होता है । ये तीनों आदेश बराबर नहीं है, इसलिये अनादेश समझना चाहिये। कारण कि पात्र रुक्ष ( सूखा ) होवे अथवा पवन या अग्निका स्पर्श होवे तो बिन्दु थोडी ही देर तक स्थित रहता है. और पात्र स्निग्ध ( चिकना ) हो तथा पवन या अग्निका स्पर्श न होय तो बहुत देर तक स्थित रहते हैं । तात्पर्य यह है कि, इन तीनों आदेशमें कालनियमका अभाव है, अतएव अतिशय स्वच्छ होवे वही तंडुलोदक अचित्त मानना चाहिये ।