Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 8
________________ (2) तजी रुषन जिणंद रे || शाठ सहस्स लगें षट्संम साधी, श्राव्या जरत नरिंद रे ||२६|| नमो० ॥ घरे ज मायने पाय लाग्या, जननी दीये आशीषरे ॥ विमला चल संघाधिप केरी, पहोंचजो पुत्र जगीश रे ॥ २७ ॥ || नमो० ॥ जरत विमासे साठ सहस्स सम, साध्या देश अनेक रे || हवे हुं तात प्रत्यें जइ पूढं संघति तिलक विवेक रे ॥ २८ ॥ नमो० ॥ समवसरणे पहोता जरतेसर, बंदी प्रजुना पाय रे ॥ इंद्रादिक सु र नर बहु मलिया, देशना दे जिनराय रे ॥ २७ ॥ ॥ नमो० ॥ शत्रजय संघाधिप यात्राफल, जांखे श्री जगवंत रे ॥ तव जरतेश्वर करे रे सजाइ, जाणी ला अनंत रे ॥ ३० ॥ नमो० ॥ ढाल पांचमी ॥ कनक कमल पगलां वे ए ए देशी ॥ राग धन्याश्री मारूणी ॥ ॥ नयरी अयोध्याथी संचरयाए, लेइ लेइ रुद्धि अशेष ॥ जरत नृप जावशुं ए ॥ शत्रुंजय यात्रा रंग नरेंए, वे वे ऊलट अंग ॥ ज० ॥३१ । यावे यावे रूषननो पुत्र, विमल गिरि यात्राये ए ॥ लावे लावे चक्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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