Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ गे मुर्गति वारे ए, सारे वांडित काज ॥ सेव्यो ए श श्रृंजय गिरिवर, आपे अविचल राज ॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग धन्याश्री ॥ सहीय समाणी आवो वेगें ॥ ए देशी ॥ ॥ उत्सर्पिणी अवसर्पिणी आरो, बिहुं मलीने बार जी ॥ वीश कोमाकोमी सागर तेहy, मान का निरधार जी ॥ १४ ॥ पहेलो आरो सूसम सुसमा, सागर कोमाकोमी चार जी ॥ त्यारे ए श्री शत्रंजय गिरिवर, एंशी जोयण अवधार जी ॥ १५ ॥त्रण्य कोमाकोमी सागर आरो, बीजो सूसमनाम जी ॥ त दा कालें श्री सिहाचल, सीत्तेर जोयण अनिराम जी ॥ १६ ॥त्रीजो सूसम पूसम आरो, सागर को माकोमी दोय जी ॥ शाठ जोयण, मान शत्रुजय, त काल दातु जोय जी ॥ १७॥ चोथो इसम सूसम जाणो, पांचमो सम आरो जी ॥ हो सम सम कहिजे, ए त्रएय यश्य विचारो जी ॥ १७ ॥ एक को माकोमी सागर केरुं, एहनु कहियें मान जी ॥ चोथे आरे श्री शत्रुजय गिरि, पचास जोयण परधान जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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