Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ ॥श्रावीतरागाय नमः॥ ॥अथ ॥ ॥ श्री नयसुंदरजीकृत सिघाचलजीनो जहार प्रारंजः ॥ ॥ विमल गिरिवर विमल गिरिवर, मंमणो जिनरा य॥श्री रिसदेसर पाय नमि,धरिय ध्यान शारदादेवि य ॥श्री सिद्धाचल गायशु ए, हीये नाव निर्मल धरेवि य॥श्री शत्रुजगिरितीरथ वमो, सिझ अनंती कोमी ॥ जिहां मुनिवर मुक्तं गया, ते वंडं बे कर जोमी ॥१॥ ॥ ढाल पहेली ॥ श्रादनराय पुहतला ए ॥ ए देशी ॥ ॥ कर जोमीने जिन पाय लागुं, सरसती पासें वचन रस मागु ॥ श्री शत्रुजय गिरि तीरथ सार, थु णवा उलट थयो रे अपार ॥॥ तीरथ नहिं को शत्रुजय तोलें, अनंत तीर्थकर णी परें बोले ॥ गु रूमुख शास्त्रनो लहिय विचार, वर्णवं शत्रुजा ती र्थ उकार ॥३॥ सुरवरमांहे वमो जेम इंद्र, ग्रहग णमाहे वमो जेम चंद्र ॥ मंत्रमाहे जेम श्रीनवका र, जलदायक जेम जग जलधार ॥ ४ ॥ धर्ममाहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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