________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थ-- दिगम्बर मुद्रा के सिवाय अवशेष जो पुरुष दर्शन झान कर संयुक्त हैं और एक वस्त्र को धारण करने वाले उत्कृष्ट ग्यारवीं प्रतिमा के श्रावक है ते इच्छा कार करने योग्य कहे हैं अर्थात् उनको “ इच्छामि " ऐसा कहकर नमस्कार करना चाहिये ।
इच्छायारमहर्ट मुतदि ऊ जो हु छंडए कम्मं । छाणे ट्ठिय समन पर लोयझहं करो होइ ॥१४॥
इच्छा कार महत्व सूत्र स्थितयः स्फुटं त्यजति कर्म । स्थाने स्थित्वा समंचति परलोके सुखकरो भवति ॥
अर्थ-जो पुरुष जिन सूत्र में स्थित होता हुआ इच्छाकार के महान अर्थ को जानता है और श्रावकों के स्थान अर्थात् १५ प्रतिमाओं में कहे हुवे आचारों में स्थित होकर सम्यक्त्व सहित होता हुवा वैया वृत्त्य बिना अन्य आरम्भादिक कर्मों को छोड़ता है वह परलोक में स्वर्ग सुखों को प्राप्त करता है अर्थात् उत्कृष्ट श्रावक सोलहवे स्वर्ग में महिर्धिक देव होकर वहां मनुष्य पर्याय पाकर निर्ग्रन्थ मुनि हो मोक्ष को पाता है।
अह पुण अप्पाणिच्छदि-धम्माइ करेदि निरव सेसाइ। तहवि ण पावदि सिद्धि संसार च्छो पुणो भणिदो॥१५॥
अथ पुनः आत्मानं नेच्छति धर्मान् करोति निर वशेषान |
तथापि न प्राप्नोति सिद्धिं संसारस्थः पुनः मणितः॥ अर्थ- जो इच्छा कार को नहीं समझता है. अथवा जो पुरुष आत्मा को नहीं चाहता है आत्म भावनाओं को नहीं करता है और अन्य समस्त दान पूजादिक धर्म कार्यों को करता है वह सिद्धि को नहीं पाता है वह संसार में ही रहता है ऐसा सिद्धान्त में कहा है।
एयेण कारणण य त अप्पा सद्दहेह तिविहेण । . जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिजह पयतेण ॥१६॥
एतेन कारणेन च तम् आत्मानं श्रद्दधत त्रिविधेन । येन च लभध्वं मोक्षं तं जानीत प्रयत्नेन ।
For Private And Personal Use Only