________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३६ ) जिनबिम्ब ५ जिनमुद्रा ६ आत्मार्थ ज्ञान ७ महन्त देव कथित देव ८ तीर्थ ९ अर्हन्त स्वरूप १० गुणों कर शुद्ध साधू ११ इनका स्वरूप यथा क्रम वर्णन करते हैं तिसको चिन्तवन करो।
मण वयण काय दन्वा आयत्ता जस्स इंन्दिया विसया। आयदणं जिणमग्गे णिदिदं सञ्जयं हवं ॥ ५॥
मनो वचन काय द्रव्याणि आयत्ता यस्य ऐन्द्रिया विषयाः । ___ आयतनं जिनमार्गे निर्दिष्टं सायन्तं रूपम् ॥
अर्थ-मन वचन काय तथा पांचों इन्द्रियों के विषय जिसके माधीन हैं तिस संयमी के रूप (शरीर)को जैनशास्त्र में आयतन कहते हैं । अर्थात जिसने इन्द्रिय मन वचन काय को अपने वश में कर लिया है उस संयमी मुनि का देह आयतन है।
मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता। पञ्चमहव्यधारी आयदणंमहरिसी भणियं ॥६॥
मदो रागो द्वेषो मोहः क्रोधो लोमश्च यस्य आयत्ता । - पञ्चमहाबतधरा आयतनं मह ऋषय भणिताः ।।
अर्थ-जिनके मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ, और माया नहीं है और पञ्च महाव्रतों के धारक हैं वे महर्षि आयतन कहे गये हैं। . सिद्धं जस्स सदच्छं विमुद्धझाणस्स गाण जुत्तस्स । सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवर वसहस्स मुणिदच्छं ॥७॥ सिद्धं यस्य सदर्थ विशुद्ध ध्यानस्य ज्ञान युक्तस्य ।
सिद्धायतनं सिद्धं मुनिवर वृषभस्य ज्ञातार्पस्य ।
अर्थ-जिसका शुद्धात्मा सिद्ध हो गया है जो विशुद्ध (शुक्ल) ध्यानी केवल ज्ञानी और मुनिवरों में प्रधान हैं ऐसे अहन्त को सिद्धायतन वर्णन किया गया है।
बुद्ध जम्बोहन्तो अप्पाणं वेइयाइ अण्णं च । पञ्चमहन्वय मुद्धं णाणमयं जाण चेदिहरं ॥ ८॥
For Private And Personal Use Only