Book Title: Shatpahud Granth
Author(s): Kundakundacharya
Publisher: Babu Surajbhan Vakil

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Page 139
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३४ ) काल में सिद्ध हुवे हैं और जे आगामि काल में सिद्ध होयेंगे वह सर्व सम्यक्त्व का महत्व जानो । भावार्थ - सम्यग्दर्शन मोक्ष का प्रधान कारण है, वह सम्यग्दर्शन ग्रहस्थ श्रावकों में भी होता है इससे ग्रहस्थ धर्म भी मोक्ष का कारण जानो । ते घण्णा सुकयच्छा तेरा तेवि पंडिया मणुया । सम्मत्तं सिद्धियरं सिवणेवि ण मइलियं जेहि ॥ ८९ ॥ ते धन्याः सुकृतस्थाः ते शूरा तेपि पण्डिता मनुजाः । सम्यक्त्वं सिद्धिकरं स्वपि न मलितं यैः ॥ अर्थ - ते ही पुरुष धन्य हैं तेही पुण्यवान हैं तेही सूरिमा हैं और पण्डित हैं जिन्होंने स्वप्न में भी सर्व सिद्धि करने वाले सम्यक्त्वः को दूषित नहीं किया है । हिंसा रहि धम्मे अहारसदोस वज्जिए देवे । णिग्गंथेप्पवयणे सद्दहणं होदि सम्पत्तं ॥ ९०॥ हिंसारहिते धर्मे अष्टादश दोष वर्जिते देवे ! निर्मन्थे प्रवचने श्रादधनं भवति सम्यक्त्वम् ॥ अर्थ - हिंसा रहित धर्म, क्षुधादिक अठारह दोष रहित देव ---- और निर्ग्रन्थ अर्थात् दिगम्बर मुनि और प्रवचन अर्थात् जिनबाणी मैं श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है जह जायरूव रुवं सुसंजयं सव्व संगपरिचत्तं । लिंगं ण वरा वेक्खं जो मण्णइ तस्स सम्मत्तं ॥ ९१ ॥ यथा जातरूपं रुपं सुसंयतं सर्व संग परित्यक्तम् । लिङ्गं न परापेक्षं यःमन्यते तस्य सम्यक्त्वम् ।। अर्थ - मोक्ष मार्गी साधुवों का लिङ्ग ( भेश ) यथा जातरुप है अर्थात् जैसे बालक माता के गर्भ से निकला हुआ बालक निर्विकार होता है तैसे निर्विकार है । उत्तम है संयम जिसमें, समस्त परिग्रह रहित है, जिसमें पर वस्तु की इच्छा नहीं हैं ऐसे स्वरुप को जो माने है तिसके सम्यक्त्व होता है । For Private And Personal Use Only

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