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उपमारहित अनन्तचतुष्टय आदि गुणोंकर सहित हैं ऐसे अर्हन्त परमेष्टी होते हैं ।
भावार्थ - यद्यपि अर्हन्तदेष के आयु, नाम, गोत्र, और वेदate इन चार अघातिया कर्मों का अस्तित्व है तौभी कार्यकारी न होने से नष्टवती है । १३ में गुणस्थान में प्रकृति वा प्रदेश बंधही होता है स्थिति अनुभागबन्ध नहीं होता है इस कारण बन्ध न होने के ही समान हैं तथा समस्त कर्मों के नायक मोहकर्म के नाश होजाने पर बाकी कर्म कार्यकारी नहीं हैं इस अपेक्षा अर्हन्त भगवान मोक्षस्वरूपही हैं।
जरवाहिजम्म मरणं चउगइ गमणं च पुण्णपावं च । इंतू दोसकम्मे हुउणाणमयं च अरिहंतो ॥ ३० ॥ जराव्याधि जन्ममरण चतुर्गतिगमनं च पुण्यपापं च । हत्वा दोषान् कर्माणि भूतः ज्ञानमयः अर्हन् ॥
अर्थ - जरा अर्थात बुढापा व्याधि अर्थात रोग, जन्म मरण चतुर्गति गमन तथा पुन्य पाप आदि दोषों को तथा उनके कारण भूत कर्मों को नाश कर जो केवल ज्ञान मय हैं वह अर्हन्त देव हैं । गुणठाण मग्गणेहिंय पज्जतीपाण जीवठाणेहिं ।
ठावण पंच विहेहि पणयव्त्रा अरहपुरुसस्स ||३१ ॥ गुणस्थान मार्गणाभिश्च पर्याप्तिप्राण नवस्थानैः । स्थापन पञ्चविधै प्रणतव्या अर्हत्पुरुषस्य ॥
अर्थ - - १४ गुण स्थान, १४ मार्गणा ६ पर्याप्ति, प्राण, जीव स्थान इन पांच स्थापना से अर्हन्त पुरुष को प्रणाम करो । तेरह गुणठाणे साजोयकेबलिय होइ अरहंतो । चडतीस अइसयगुण होंतिहु तस्सद्ध पडिहारा ||३२|| त्रयोदशमे गुणस्थाने सयोगकेवलिको भवति अर्हन् । चतुस्त्रिंशदतिशयगुण भवन्तिहु तस्यप्रातिहार्याणि ||
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