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अर्थ-जो पञ्च महाप्रतधारी, पांचों इंद्रियों को वश करनेवाले वांछारहित और स्वाध्याय तथा ध्यान में लपलीन रहते हैं वह प्रधान मुनिवर ध्येय पदार्थो को विशेषता कर वांछत हैं।
गिह गंथ मोह मुका बावीस परीसहा जियकसाया। पावारंभ विमुक्का पन्यज्जा एरिसा भणिया ॥४५॥
ग्रह अन्य मोह मुक्ता द्वाविंशति परीषहाजिद अक्षाया । पापारम्भ विमुक्ता प्रवज्या ईशी भाणता ॥
अर्थ-ग्रह निवास, वाह्य अभ्यन्तर परिग्रह और ममत्व परिणाम से रहित होना, २२ परीषहाओं का जीतना, कषाय तथा पापकारी आरम्भ से रहित होना ऐसी प्रव्रज्या (मुनिदीक्षा) जिन शासन में कही है।
धणधण्ण वच्छदाणं हिरण्णसयणासणाइछत्ताई। कुदाणविरहरहिया पवजा एरिसा भणिया ॥४६॥
धन धान्य वस्त्रदानं हिरण्य शयनासनादि छत्रादि ।
कुदान विरहरहिता प्रव्रज्या ईशी भणिता ।।
अर्थ- वस्त्र (धोती दुपट्टा आदि ) हिरण्य (सिक्का) शयन (खाट पलँग) आसन (कुरसी मूढा आदि) तथा छत्र चमर आदि कुदानो के दान देने से रहित हो।
सत्तमित्यसमा पसंसणिंदा अलद्धि लद्धिसमा । तणकणए समभावा पवजा एरिसा भणिया ॥४७॥
शत्रुमित्र च समा प्रशंसा निन्दायां अलब्धि लब्धौ। तृण कणके सम मावा प्रवज्या ईदशी भणिता ॥
अर्थ-जहां शत्रु मित्र में, प्रशंसा निन्दा में, लाभ अलाभ में, तृण कंचन में, समान भाव (रागद्वेष न होना) है ऐसी प्रव्रज्या जिन शासन में कही है।
उत्तममझिमगेहे दारिदे ईसरे निरावेक्खा। सम्वच्छ गिहदिपिंडा पवजा एरिसा भणिया ॥४८॥
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