Book Title: Shatpahud Granth
Author(s): Kundakundacharya
Publisher: Babu Surajbhan Vakil

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Page 136
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेपावमोहियाई लिंगं घेत्तूण निणवरिंदाणं। पावं कुणंति पावा ते चत्ता मोक्खमम्गम्मि ।। ७८ ॥ ये पापमोहितमतयः लिङ्गं ग्रहत्विा जिनवरन्द्राणाम्: ___ पापं कुर्वन्ति पापाः ते त्यक्ता मोक्षमार्गे ॥ अथे-पाप कार्यों कर मोहित है बुद्धि जिनकी ऐसे जे पुरुष जिन लिङ्ग (नग्नमुद्रा) को धारण करके भी पाप करते हैं ते पापी मोक्ष मार्ग से पतित हैं। जे पंचचेलसत्ता गंथगाहीय जाणसीला । आधाकम्पम्मिरया ते चत्ता मोक्ख मग्गामिम ॥ ७९ ॥ ये पञ्चचेलशक्ताः ग्रन्थ ग्राहिणः याचनशीलाः अधः कर्मणिरताः ते त्यक्ता मोक्षमार्गे ॥ अर्थ-जे पांच प्रकार में से किस्री प्रकार के भी वस्त्रों में आसक्त हैं अर्थात् रेशम वक्कल चर्म रोम सूत के वस्त्र को पहनते हैं परिग्रह सहित हैं, याचना करने वाले हैं अर्थात् भोजन आदिक मांगते हैं और नीचकार्य में तत्पर हैं वे मोक्ष मार्ग से भ्रष्ट हैं। णिरगंथमोहमुक्का वावीसपरीसहा जियकसाया । पावारंभ विमुक्का ते गहियामाक्खमग्गम्मि ।। ८०॥ . निर्ग्रन्था मोहमुक्ता द्वाविंशतिपरीषहा जितकषायाः । पापारम्भ विमुक्ता ते गृहीता मोक्षमार्गे || अर्थ-जे परिग्रह रहित हैं पुत्र मित्र कलित्रादिको से मोह (ममत्व) रहित हैं वाईस परीषहाओं को सहने वाले हैं जीत लिये हैं कषाय जिन्होंने और पापकारी आरम्भों से रहित हैं वे मोक्षमार्ग में गृहीत हैं अर्थात वे मोक्षमार्गी हैं। 'ऊद्धद्धमझलोए केई मज्झण अहयमेगगी । इय भावणाए जोई पावंतिहु सासयं सोक्खं ॥ ८१ ॥ उर्वार्धमध्य लोके केचित् मम न अहकमेकाकी । इति भावनया योगिनः प्राप्नुवन्ति. स्फुटं शास्वतं सौख्यम् । For Private And Personal Use Only

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