________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३३ ) जीवाजीवविभक्तियो जानाति स भवेत् सज्ञानी ।
रागादिदोषरहितो जिनशासन मोक्षमार्ग इति ॥ अर्थ--जो पुरुष जीव और अजीव के भेद को जानता है वह ही सम्यग् हानी है और राग द्वेषरहित होना ही जैनशास्त्र में मोक्षमार्ग है।
दसण णाण चरितं तिण्णिवि जाणेह परम सद्धाए । जं जाणिऊण जोई अइरेण लहंति णिव्वाणं ॥४॥ ___ दर्शनज्ञानचारित्रं त्रिण्यपि जानीहिपरमश्रद्धया । . यदज्ञात्वायोगिनो अचिरेण लभन्ते निर्वाणम् ॥
अर्थ-हे भव्यो १ तुम दर्शन शान चरित्र इन तीनों को परम श्रद्धा के साथ जानो योगी (मुनी) इन तीनों को जान कर थोड़े ही काल में मोक्ष को पाते हैं।
पाऊण गाण सलिलं णिम्मल सुबुद्धि भाव संजुत्ता। हुंति सिवालयवासी तिहुवण चूड़ामणि सिद्धा ॥४१॥
प्राप्यज्ञानसलिलं निर्मलसुबुद्धिभावसंयुक्ता । भवन्तिशिवालयवासिनः त्रिभुवनचूडामणयः सिद्धाः॥
अर्थ-जो पुरुष जिनेन्द्र कथित शान रुपीजल को पाकर निर्मल और विशुद्ध भावों सहित होजाते हैं वेही पुरुष तीन भुवन के चूड़ामणि अर्थात तीन जगत में शिरोमणि जो मुक्ति का स्थान अर्थात सिद्धालय है उसमें वसने वाले सिद्ध होते हैं।
णाणगुणेहिं विहीणा ण लहंते तेसु इच्छियं लाई । इय गाउं गुणदोसं तं सण्णाणं वियाणेहि ॥४२॥
जानगुणैर्विहीनाः न लभन्ते ते खिष्टं लाभम् । इतिज्ञात्वागुणदोषौ तत् सदज्ञानं विजानीहि ॥
अर्थ-शान गुण से रहित पुरुष उत्तम इष्ट लाभ को नहीं पाते हैं इसलिये गुण और दोष को जानने के लिये उस सम्यग् कान को जानो।
For Private And Personal Use Only