Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ४, ३] वेयणमहाहियारे वैयणदत्वविहाणे पदमीमांसा (२१ जहण्णा किमजहण्णा किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा किमोजा किं जुम्मा किमोमा किं विसिट्ठा किण्णोमणोविसिट्ठा त्ति तेरसपदविसयमेदं पुच्छासुत्तं दट्ठव्वं । णाणावरणीयवेयणाए विसेसाभावेण स्रामण्णरूवाए तेरस पुच्छाओ परूविदाओ। सामण्णं विसेसाविणाभावि त्ति कट्ट एदेणेव सुत्तेण सूचिदाओ तेरसपदपुच्छाओ वत्तइस्सामो । तं जहा
उक्कस्सणाणावरणीयवेयणा किमणुक्कस्सा किं जहण्णा किमजहण्णा किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा किमोजा किं जुम्मा किमोमा किं विसिट्टा किण्णोमणोविसिट्ठा त्ति बारस पुच्छाओ उक्कस्सपदस्स हवंति । एवं सेसपदाणं पि बारस बारस पुच्छाओ पादेक्कं कायवाओ । एत्थ सवपुच्छासमासो एगूणसत्तरिसदमेत्तो | १६९/तिम्हा एरम्हि देसामासियसुत्ते अण्णाणि तेरस सुत्ताणि पविट्ठाणि त्ति दट्ठव्वं ।
उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा ॥३॥ .. एदं पि देसामासियसुत्तं, तेणेत्थ सेसणवपदाणि वत्तव्वाणि । देसामासियत्तादो चेव सेसतेरससुत्ताणमेत्थ अंतब्भावो वत्तव्यो । तत्थ ताव पढमतुतपरूवणा कीरदे। तं जहाणाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा, गुणिदकम्मंसियसत्तमपुढवीणेरइयम्मि भवद्विदिचरिम
है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओज है, क्या युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नो-ओम-नोविशिष्ट है, इस प्रकार तेरह पदविषयक यह पृच्छासूत्र समझना चाहिये । इस प्रकार ज्ञानावरणीयवेदनाके विषयमें विशेषके विना सामान्य रूपसे प्ररूपणा करनेपर तेरह पृच्छायें कही गई हैं। किन्तु सामान्य विशेषका अविनाभावी होता है, ऐसा समझ करके इसी सूत्रसे सूचित होनेवाली अन्य तेरह पदपृच्छाओंको कहते हैं। वे इस प्रकार हैं
उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओज है, क्या युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोओम-नोविशिष्ट है। इस प्रकार बारह पृच्छायें उत्कृष्ट पदविषयक होती हैं । इसी प्रकार शेष पदों से भी प्रत्येक पद विषयक बारह बारह पृच्छायें करनी चाहिये । यहां सब पृच्छाओं का योग एक सौ उनत्तर होता है|१६९|| इसी कारण इस देशामर्शक सूत्र में तेरह सूत्र और प्रविष्ट है, ऐसा यहां समझना चाहिये।
उत्कृष्ट भी है, अनुत्कृष्ट भी है, जघन्य भी है और अजघन्य भी है ॥ ३ ॥
यह भी देशामर्शक सूत्र है, इसलिये यहां शेष नौ पद कहने चाहिये और देशामर्शक होनेसे ही शेष तेरह सूत्रोंका यहां अन्तर्भाव कहना चाहिये । उनमेंसे पहले प्रथम सूत्रकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-शानावरणीयवेदना स्यात् उत्कृष्ट है, क्योंकि, भवस्थितिके अन्तिम समयमें वर्तमान गुणितकोशिक सप्तम-पृथिवीके
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