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ऋग्वेदी परंपरा भगवान व्यास के ऋग्वेदी शिष्य पैल ऋषि ने अपनी संहिता के दो विभाग कर, एक बाष्कल को और दूसरी इन्द्रप्रमिति को पढाई। बाष्कल की शाखा में बाध्य, अग्निमाठर, पराशर और जातुकर्ण्य इत्यादि शिष्य-परंपरा निर्माण हुई। इन्द्रप्रमिति की शाखा में, माण्डूकेय, सत्यश्रवा, सत्यहित, सायश्रिय, देवमित्र, शाकल्य, रथीतर, शाकपूणि, बाष्कली, भारद्वाज इत्यादि शिष्य-परंपरा निर्माण हुई। इन में देवमित्र और शाकल्य ने शिष्य परंपरा का अधिक विस्तार किया।
ऋग्वेद की 21 शाखाओं में शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और माण्डूकेय यह पाच शाखाएं प्रमुख मानी जाती हैं। तथापि उनमें केवल शाकल शाखा की संहिता आज उपलब्ध है और उसी का सर्वत्र अध्ययन होता है। शांखायन शाखा की संहिता उपलब्ध नहीं है (कहते हैं कि पांडुलिपि विद्यमान है।) तथापि शांखायन शाखीय ब्राह्मण, आरण्यक और कल्पसूत्र (श्रौत और गृहय) उपलब्ध हैं। उसी प्रकार शांखायनों के (शाखायन, कौषीतकी, महाकौषीतकी और शावध्य नामक) चार विभागों में से, केवल कौषीतकी शाखा के ब्राह्मण, आरण्यक, श्रौतसूत्र और कल्पग्रंथ उपलब्ध हैं।
3 वेदकाल पाश्चात्य विद्वानों ने अन्यान्य प्रमाणों के आधार पर वेद संहिताओं की रचना का काल निर्धारित करने के जो प्रयास किए वे सर्वथा अभिनन्दनीय हैं। परंतु इस विषय में आज तक विद्वानों में एकवाक्यता नहीं हो सकी और आगे चलकर वह होने की संभावना भी नहीं है। भारतीय प्राचीन परंपरा के अनुसार वेद के आविर्भाव का कालनिर्णय करना असंभव माना गया है। इतिहासज्ञों के मतानुसार वेद संसार की आद्य ज्ञानराशि मानी गयी है। उसकी निर्मिति के विषय में इसा पूर्व 1000 से 75000 वर्षों तक का काल निर्धारित करने वाले गतभेद प्रसिद्ध हैं। इस विषय में विद्वानों के मत निम्न प्रकार हैं। प्रो. मैक्समूलर ईसापूर्व 13 वीं सदी
प्रो. लुडविग्
ईसापूर्व 45 से 60 वीं सदी प्रो. मैकडोनेल ईसापूर्व 13 वीं सदी
प्रो. हाग
ईसापूर्व 45 से 60 वीं सदी प्रो. वेबर ईसापूर्व 15 से 12 वीं सदी लोकमान्य तिलक
ईसापूर्व 45 से 60 वीं सदी प्रो. व्हिटनी ईसापूर्व 20 से 15 वीं सदी
श्री शंकर बालकृष्ण पावगी। ईसापूर्व 70 वीं सदी प्रो. केजी ईसापूर्व 20 वीं सदी
श्री अविनाशचंद्र दास ईसापूर्व 250 से 750 वीं सदी प्रो. याकोबी
ईसापूर्व 45 से 60 वीं सदी वेदकाल के विषय में इन विद्वानों ने अपना मत प्रतिपादन करने के लिए जो विविध युक्तिवाद या तर्क प्रस्तुत किए, उनका सारांश इस प्रकार कहा जा सकता है :
प्रो. मैक्समूलर का कहना है कि, बौद्ध धर्म का उद्गम ब्राह्मण धर्म की प्रतिक्रिया में अर्थात् वैदिक धर्ममतों का विरोध और खंडन करने के लिए ही हुआ। अर्थात् बौद्ध धर्म के उद्गम (ईसापूर्व 500) के पहले संपूर्ण वैदिक वाङ्मय से सूत्र, ब्राह्मण और संहिता की रचना का काल प्रो. मैक्समूलर ने सामान्य तर्क के आधार पर इस प्रकार निर्धारित किया है:
सूत्रकाल - इ. पू. 600 से 200 तक। ब्राह्मणकाल - इ. पू. 800 से 600 तक । संहिताकाल - इ. पू. 1000 से 800 तक।
काव्यविकास के लिए सामान्यतः दो सौ वर्षों का समय लगता है इस कारण वैदिक साहित्य का आरंभ ईसा पूर्व 1200 से 1000 वर्षों तक ही मानना योग्य होगा ऐसा मैक्समूलर के प्रतिपादन का सार है।
प्रो. याकोबी और लोकमान्य तिलक सन 1893 में जर्मनी के बॉन शहर में प्रो. याकोबी और महाराष्ट्र के पुणे शहर में लोकमान्य तिलक, जिन दोनों का । परस्पर कोई संपर्क या संबंध नहीं था, वेदकाल के विषय में अन्वेषण कर रहे थे। दोनों की कालनिर्धारण की पद्धति अलग अलग थी; परंतु दोनों का निष्कर्ष एक समान निकल आया। उनके प्रतिपादन का संक्षेप इस प्रकार कहा जा सकता है :
ब्राह्मण काल में नक्षत्रों की गणना कृतिका से होती थी। वेदों में उन्हें एक वर्ण मिला, जिस में कहा है कि कृत्तिकाओं के उदय काल में “वासन्ती संक्रान्ति" (व्हर्नल एक्विनॉक्स) भी हो रही थी। ग्रहगति की गणना के आधार पर इन विद्वानों ने निष्कर्ष निकाला कि, ईसापूर्व सन 2500 में कृत्तिका नक्षत्र के उदयकाल पर, “वासन्ती संक्रान्ति' होना संभव है, अर्थात ब्राह्मण ग्रंधों का रचनाकाल वही होने की संभावना है।
वैदिक संहिता में उन्हें और एक ऐसा वर्णन मिला कि जिसके अनुसार मृगशिरा नक्षत्र में वासन्ती संक्रान्ति हो रही थी। अयनगति की गणना के अनुसार सृष्टिचक्र में यह अवस्था ईसापूर्व सन 4500 में हो सकती है। अर्थात् यही संहिता की रचना का काल होना संभव है।
संस्कत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/9
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