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लतेव सत्ता मृदुपलगना पदे पदे कौतुकमम्बिधाना । समस्तु भूमो कविता सुचित्ता-लि यःमदा मौरभवादिविना ।१३।
- इस धरातल पर कविता एक लता सीखो होनी चाहिये, लता कोमल पत्तोंवाली होती है, उसी प्रकार कविता में प्रच्छे पद होने चाहिये । लता में जगह जगह फूल हवा करते हैं उसी प्रकार कविता पद पद मे एक विनोद को छटा होनी चाहिये। मता भोरों के लिये सुगन्ध को देने वाली होती है उसी प्रकार कविता भी सम्जनों के लिये स्वर्गीय जन्म वर्गरह पम्युग्य मम्मति को करने वालो होनी चाहिये । वाङमें मदीपाऽपित मन्यगंमा कनिमदम्योमनिहावामा । शिवध दीपम्य ननम्न एनां पश्यन्तु मम्नहद नाममनाः ।।१४।।
प्रयं-पह मेगे वागी यपि अनेक प्रकार के दागों वाली है फिर भी मत्य की प्रशंमा करने वाली है इमलिये महम हो मम्जन लोगों को रुचिकर होनी चाहिये, जसे कि गत्रि में पाने वाली वोपक को लो उजाला करतो है प्रतः उममें लोग नेम और बनी बनाये रखते हैं उसोप्रकार इस मेगे कृति को भी भने पुगा नगभग दृष्टि से देखेंगे ऐसो प्राशा है। कुर्यात कविः कान्दविकः कवित्वं धगतले मादकमात्मवित्वं । विनंदधानाः बलु पुण्यवन्तः ग्मन्तु तम्याशु ग्मंतु मन्नः ।।१५।।
प्रयं-कवि एक हलाई की तरह है, उमका काम है कि वह पृथ्वी के सभी लोगों के लिये मोहक प्रर्यात प्रसन्नता देने वाला