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न्य पड़ने का काम करते हुये ठहरा देने वाला है तो धर्मण्य पुनः किया शुरु करने वाला है। जीवः पुनः पुद्गल एतदीग-द्वयेन नाटय कियने म्वकीयं । रूपं परावृत्य परम्परप्य मंयोगतो भी जगदेकशम्य ! ।।४।।
मर्थ-जीव और पुद्गल ये दोनों प्रापममें मिलकर एक दूसरे के रूपको बदल कर स्वांग भर करके नाटक मेलने वाले हैं उसोका नाम जगत या संसार है, ऐमा हे सज्जन तुझे समझना चाहिये । निशा मुधा कुंकुमनां प्रयातः सृष्टिग्नधेयं निट निद्विधानः । नृ नारका मयं पापकाग मायने कतिपनवदिवाग ।।५।।
___अर्थ-जिम प्रकार हलदो पौर चना दोनों मिलकर गेली एक तोमरी चीज बन जाती है वमे हो नन जीव प्रौर प्रचेतन पुद्गल ये दोनों मिलकर मष्टि को उत्पन्न करते हैं, इन दोनों को बनावटी चेष्टा को पाकर मनुष्य नारको देव प्रौर पर इस तरह चार भेदवाली मष्टि बनी हुई है। गुणोऽस्ति जीवम्य किलोपयोगननाप्य जीवन ममं च योगः । नतो हि मंमार इयानिहाम्ति वियोग बास्त शिवाभ्यपास्तिः । ६
प्रयं---इस जीव में उपयोग नामका गुण है और वह पूरण गलन स्वभाव वाले पृद्गन नाम के प्रजोत्र के माथ में सम्बन्ध प्राप्त किये हुये है इमो मे जन्म मगरूप मंमार बना दवा है, प्रतः जो प्रादमी इमे नहीं चाहना उमे चाहिये कि वह वियोग को प्रर्थात् संबंध विच्छेद को स्वीकार करे जिसमे कि इसका भला हो ।