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खाने लगता है, भात उसे कहता नहीं कि तू मुझे खा ले परन्तु ऐसा हो निमित्त नमित्तिक सम्बन्ध है, हां जो व्रती होता है, जिसने कि भोजन का त्याग कर दिया है और जो अपने संकल्पका दृढ़ है, वह भोजन होने पर भी और भूग्व होने पर भी भोजनके लिये प्रवृत्त नहीं होता, अपने उपयोग को नहीं बिगाड़ता। बस तो कर्मोंका भी संसारी प्रात्मा के प्रति ऐसा हो हिसाव है, कर्म का उदय होता है
और मनचला अधोर जोव उसके अनुसार होकर स्वयं वंसी चेष्टा करने लगता है, हां, जो दृढ़ मनवाला होता है वह उसे धीरता से सहन कर जाता है, तटस्थ रह कर निराकुल होता है । यही प्रयत्न का अर्थ है।
यत्नाय धात्रीवलये नृपालः ! समम्ति तेऽयं खलु योग्यकालः । निजीयकर्नव्यपर्थ मजन्तः मंसिद्धयकालमुपन्ति मन्तः ।२०
अर्थ-इस धरातल पर होने वाले सज्जन लोग अपने कर्तव्य पथ पर प्रारूढ़ रहकर उस प्रयत्न को सफलता के लिये काल को भी प्रतीक्षा किया करते हैं, जिसका कि निमित्त पाकर वे लोग सहज सफल बन जाया करते हैं, परन्तु हे राजन् ! तुम्हारे लिये यह समय बहुत ठीक है। शरीरमेवाहमियान्विचारोऽशुभोपयोगो जगदेककागः । प्रतीयतेऽयं वहिगमनम्तु यथार्थतो यद्विपरीतवस्तु ।२१
अर्थ यह शरीर है सो हो मैं हूं. इससे भिन्न मैं कोई चीज नहीं हूं, इस प्रकार के विचार का नाम प्रशुभोपयोग है, इसका