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ब नहीं था फिर भी वह बहुत से वेशकीमती कपड़ों को धारण किये ये की तरह निःसंकोच था क्योंकि उसके मन में किसी भी तरहका एल या बनावटीपन नहीं था। इसीतरह वह कोई भी तरह का हना भी पहने हुये नहीं था फिर भी वह सबको सुहावना होकर पृथ्वी को शोभा को बढ़ा रहा था।
नोच्चबान कवानव मम्नकान् म महोदयः मम्तो निष्पृहत्वेन हृदयाद्दुर्विधीनपि ।। ४ ।।
अर्थ-उस महानुभावने अपने मस्तक पर के केशों को उखाड़ कर फक दिया, इतना ही नहीं किन्तु निप्पृहताके माथ २ सम्बरभावको धारण कर लेने वाले उमने अपने मन में से बुरे भावों को भी निकाल फेंका।
न चादत्त मघावृत्ति म हितकरतां गतः नालीकालुवक्त्रोऽपि नालीकमवदन्कदा । ५।।
प्रयं-उसने तस्करताको, चोरी करने को अपना धन्धा बना रखा था, फिर भी बिना दी हुई कोई की कुछ चीज भी नहीं लेता था। तथा मत्य बोनने वालों से ईर्षा के मारे मुह मोड़कर चलता था फिर भी कभी झूठ नहीं बोलता था, ऐमा प्रर्थ होता है जो कि परस्पर विरुद्ध है इसलिये ऐमा प्रर्य करना कि वह सहितः प्रर्थात सबके हितको चाहता था इसलिये चोरी से दूर था और उसने करता प्रर्थात् प्रात्म तल्लीनताको ध्यान को ही अपना धन्धा समझता था । मोर झूठ नहीं बोलता था, प्रतः कमल को भी परे बिठाने वाले प्रसन्न मुहका धारक था।