Book Title: Samudradatta Charitra
Author(s): Gyansagar
Publisher: Samast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer

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Page 107
________________ अधिकारी वास्तविकता मे दूर रहने वाला प्रतएव संमार का बढ़ाने पाला बहिराम नाम का जोव होता है । ममम्ति देहान्मविवेकम्पः भोपयोगी गुणधर्मकृपः किलान्तगन्माऽयमनन भाति परीतममारममुद्रतातिः ।। २२ । प्रपं- शरीर से प्रात्माको भिन्न मानते हुये विवेकरूप विचार होने का नाम भोपयोग है. इम शुभोपयोग मे पात्मा गुणवान पोर धर्मात्मा बन जाता है तथा अन्तरात्मा कहलाने लगता है जिममे कि यह मंमार ममुद्र, घट कर सिर्फ उना मा हो लेता है जितना कि एक चतुका पानी। आत्मानमंगात पृथगव का दादीपयोगी रिता बहतु : महात्मनः सम्भवतीत्यनः म्याद भमण्डले पयतया समस्या । २३ प्रय-फिर वही प्रतगत्मा प्रपनी मामा को हम शरीरसे बिलाल पृथक करने के लिये वेशावान होता है ता रागद्वेषादि कषायों को दबाने वा नष्ट करने लगता है, जिपको कि प्रागम भाषा मे उपशमग्गि या पकगि कहते है.. वहां प्रामाका जो विचार भाव होता है उसे दोपयोग करने है, प्रोर महाप्रयोगका धारक महा माहम धरातल पर होने वाले मनी मभ्य पुत्रों में पूज्य होता है । मासान मकन म मनांप्रमोग-प्रकारकः म्यान परमोपयोगः यदाश्रयः श्रीपरमात्मनामा निहाप पंच म पृणधामा ।।२४। प्रपं- एक माथ माक्षात रूपमे मम्पूर्ण पदार्थों को विषय करनेवाला परमापयोग होता है, इस परमोपयोग को प्राप्त होने वाला प्रारमा परमात्मा कहलाता है । पूर्वोक्त प्रकार शुद्धोप

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