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पर्थ -अपने प्रापके साय २ पोरों को भी भलाई का जिस में सम्पादन हो ऐसे प्रक्रमका नाम शुभ योग होता है. हे प्रात्महितंषो यह तुझे जान लेना चाहिये । पौर वह शभयोग ही इस जीव को इन्द्रादि पदका देने वाला होता है ऐमा श्री जिन भगवान बता गये हैं। ममम्तु दौम्पियविधिः दाचान्गम्याच निन्दाकरणादिवाना । योगोऽशुभीमारणताह नादि तन्वा जनी बन भवेत प्रमादी ।२८
प्रथं-फलाना मर जावे, उमका धन लट जावे इत्यादि हदय के बुरे विचाग का, यह चौर नगलबार पुतं है. इत्याविरूप वचन मे किमी को निन्दा करने का, या शरीर के द्वारा किमो को निदेयता के माय माग्ने पीटने का नाम प्रयोग होता है जिम के कि वा में होकर पर प्रादमी पागल सा बन जाता है।
ममम्ति योगः म माभिवादी तन्वा त दानाचनमन्क्रियादि । कामायनोदाय मिपद हरा चानमन्य सम्पादांयांधश्न वाचा ।२९
प्रयं-- दागेर के द्वारा भगवान की पूजन करना, दान देना, मज्जनों का मस्कार करना, हदय में उदारता प्रौर क.ग्गा भाय गवना, किमी को भी प्राश्चामन कारक या झगडा टण्टा मिटाने वाले वचन कहना इत्यादि मय शुभयोग कर लाना है। यह प्रशुभ प्रौर शुभ योग का स्पष्टीकरण है। प्रान पुण्यं शुभयोगभावाटभोपयोगेन भवेन मदा वा । यम्पादये शक्रपदादिला भी जीवम्य भयाडिदिनं मया भी ।३.