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हटाकर हुवा करता है किन्तु प्रापके चरणों का समागम पाकर मनुष्य उत्तम होजाया करता है एवं पापका अनुशासन किसी का भी बिगाड़ नहीं करता।
इत्युक्त वनिपालेन वाञ्छनाभ्यनुशामनं । क्षमाभृतो मुनेन्कान् प्रतिध्वनिग्यिानभन ।।३४।।
पर्ण-इस प्रकार अनुशासन चाहनेवाले भूपालने जब कहा तो पर्वत के समान निश्चल क्षमाशील धीमुनिराज के गह से इसप्रकार प्रतिध्वनि होने लगी।