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शिव भिगम्य योऽम्बरं बद्भिः सकलं भुवम्नलं । त्रिनगम पुनार मानल, मयमाकामति मलतोऽचलः ।।४।।
प्रयं-जो पर्वत प्रपने शिखरों द्वारा तो प्राकाश को और इधर उधर बिखर वाले पत्थरों द्वारा इस भूमण्डल को घेर कर तीन जगत में में बाकी बचे पाताल लोक को अपनी जड़ के द्वारा घर ।
नटिनीदरातो महीभृति परिणामेन महीयमी मनी । नगर्गपति गज। टनिट विद्याधरलोकमंग्रहः ।।५।।
प्रयं-हम पर्वत पर (पच्चीस योजन को ऊंचाई पर जाकर) इधर उधर दाना तक में टिनी प्रति जगह छटो हुई है जो कि परिणाम में म्यूब ची। प्रोर ठेठ तक लम्बी खूब विशाल है ( जिसे कम मे दक्षिण अंगी ग्रोर उत्तर श्रेणी कहते हैं ) जिस पर नगरि. पा बनोट र जि में विद्याधर लोगों का समाज रहता है।
प्रविनि गामक महजं येन नरेश्वगेऽनकं । इन उनर सम्भवम्बर -विजयायति अपेनि चोद्वलः ।६
प्रथं- इस विनमा पर्वत के पार पार दो सुरङ्ग है जो कि महज ही बनी है जिनमें से होकर बड़ो भारी सेना को साथ में लिये ये चा: : वां में उत्तर की तरफ के तीन सणों को जोतने के लिये प्रामनी से चला जाता है और विजय करके वापिस पा जाता है।