Book Title: Samudradatta Charitra
Author(s): Gyansagar
Publisher: Samast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer

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Page 41
________________ पो और इसीलिये यद्यपि वह अपने मन में सहज कपट रखे हुये था फिर भी उसने राजा से भी सत्यघोष नाम पा लिया था। यथैव मामादननः मुद्दष्ट मिथ्यावयोगी वलयेऽत्र मृष्ट : । तत्पत्तनं प्राप च भद्रमित्रः श्रीभृतिना योगमवाप नत्र ।२४ प्रथ-जिस प्रकार इस धगतल पर सम्पष्टि जोधका सासादन गुणस्थान में पहुंचकर फिर मिथ्यात्व मे मम्बन्ध हो जाया करता है उसी प्रकार उम भद्रमित्र लरक का उस मिहपुर मे पहुंचकर उसी श्रीभूति नाम ब्राह्मण के माथ मं घोग बना। दन्या पुरस्कारमथेष्ट मम्म जगाद भद्रो भवनामहन्त । म्थातु ममिच्छामि मबन्धवगः पुत्र नन्यम्भावनी भवन्तु ।२५ प्रयं- भवमित्र ने प्रादर पूर्वक श्रीभूति को बहन मा पुरम्कार देकर फिर उससे कहा कि ? माशय में भी मेरे माता पिनादि सहित प्रापके नगर में वमना चाहता जिसके लिये प्राप पाना करें तो बहुत अच्छा हो । नेनोदिनं बाढमही बसेन युप्माकमातृकरना न चतः । नथा प्रचकाम इती वयन्तु तेम ममन्नाननपा नपन्तु ।२६ प्रयं-उमने कहा कि हां हां तुम लोग जहर प्राकर नही, हम तुम्हारे लिये ऐसा हिमाब लगा रहे है कि तुम लोगों को कोई भी प्रकार की पड़वन न हो पावे, इसके ऊपर तो फिर मबका भला करने वाले जिन भगवान है।

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