________________
प्रयं-फिर रानी, दासो को बुला कर यज्ञोपवीत वगैरह तीनों चीजें उसे देकर बोलो कि हे रासो ! सुन, तू मन्त्रीजी के घर मा पोर इनको घरवालो से भमित्र के रहनो को पुटरिया शीघ्र हो मांग करके ले प्रा, बस इतना कर । इसके सिवा जो बात है सो तू सब जानती हो ।। गया तद्गृहमेषका च महमा मन्त्री मभायां स्थितः भो भो भट्टिनि भद्रमित्र वसुकं मागं तु मे देहि तत् । इत्युक्त्वा समपन्य गन्नपिटकं राज्यं तदेषा ददो, मंमिद्धन्यभिवारि मनमि चेन म्या दहनां श्रीपदौ ।४।।
प्रपंचासो ने शीघ्र हो जाकर ग्राह्मणो मे करा. हे भट्टिन नो! मन्त्री जो तो राज सभा में विराजे है मोर उन्होंने अपनी जनेऊ वगैरह तीनों चीजे निशान रूप में भेजी है कि न जाकर भद्र मित्र के रत्नों की पिटारी मेरे घर में ले प्रा, प्रतः प्राप उमे दे दीजिये, ऐमा कह कर उन रत्नों को लाकर दामी ने गनी को दे दिये ठोक हो है भगवान के चरणों को याद करने वालो के मब काम मिस हो जाते हैं।