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वराजते मार्गणता शरेषु करम्य वाधापि पयोधरेषु । वियोगितोद्यानमहीरुहेषु वैफामन्यत्र च किंशुकेषु ।६।
म-जहां पर मार्गरण कहलाने वाला प्रगर कोई है तो एक वारण है परन्तु भिखमङ्गा कोई नहीं, करको बाधा भो युवतियों के कुचों में ही होती है अर्थात उन्हें हो हाथ से पकड़ २ कर उनको सन्तान चूसा करती है परन्तु कर यानि सरकारी चुङ्गो को बाधा कुछ भी नहीं है। वियोगोपना भी बगीचे के वृक्षों में हो पाया जाता है क्योंकि उन पर पक्षी लोग निवास करते हैं परन्तु और किसी को किसी भी प्रकार का वियोग का दुःग्य नहीं होता और निष्फलपरणा तो एक टेसू के फूलों में ही है किन्तु अन्य सभी के प्रयत्न सफल हो होते दीख पड़ते हैं । मगल एवान्वयने मगेगः परं मुग्न्या विधाप्रयोगः । यत्र प्रवाहः विदपामधोगः सम्प्राप्यने नोइगणो नभोगः ।।७।।
प्रथं-जहां पर मरोग प्रर्थात् तलाब पर रहनेवाला हंस हो पाया जाता है किन्तु कोई भी रोगी देखने को नहीं मिलता। मुरली में हो विवर अर्थात छेव होते हैं किन्तु किसी का भी अनमेल विवाह नहीं होता और न कोई खोको विधवापन का हो दुःख होता है। एक जल का प्रवाह हो नीचे की ओर जाने वाला है और कोई भो मादमी निन्ध माचरण करने वाला नहीं है। नभोग कहलाने वाला भी जहां तारापोका समूह ही है क्योंकि वह प्राकाश में घूमता रहता है बाको और कोई मनुष्य भोगजित नहीं है सब के पास सब तरह के ठाट पाये जाते हैं।