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भ्रमवशाइववन्मनि मन्युमाँश्वविषयानुपयम्य विपोपमान | ममगमं परितापनिमित्ननामिह निजात्मन एवं मनिहना ।१४
प्रयं-मैं एक समयं पुरुष होकर भी इस जन्म मरणरूप चक्कर में प्राकर मैने विष के ममान इन विषयों को अपना लिया इमलिये मेरी बुद्धि मारी गई और भ्रम के वश में होकर के मैं अपने प्रापके लिये परिलापका कारण बन गया। नाह कगम्यहमतदिहाग्रतः विपभिपग ध्रियतां ग महानत: यदिता गदनः प्रविनश्यतु झगिनि पूर्व कृतं ममकम्य तु ।१५
प्रधव में समझ गया, प्रगाड़ो के लिये तो मैं ऐसा नहीं क.गा पर मेरा पहले का किया भी तो नष्ट होना चाहिये कि नहीं। इसके लिय में किसी बड़े भारी विष वंद्य को चलकर प्राप्त होऊ जिनकी कि कही हुई दवा से मेरा वह विष भी तो दूर हो ताकि में स्वस्थ हो जाऊं। भवतु मेऽपिल दहिपु तुल्यता गुणिजनप पुनर्वहुमन्यता । प्रतिविधायपु मौनमितम्नना दतियोगिषु चेनम आई ता ।१६
प्रथं -जिम कि अनुशीलन से मेरी प्राणीमात्र में समान बुद्धि हो जाये, सब को में मेरे मित्र समझने लग जाऊं, हो मेरे से जो मधिक गुणवान हों उनमें मेरा प्रादर भाव जरूर रहे ताकि प्रागे बढ़ने की चेष्टा करता रहूं, जो लोग पिछड़े हुये हों पाप के योग से भूल रहे हों उनके प्रति मेरा करुणाभाव बना रहे उन्हें मै प्रोत्साहन देकर उन्नति के मार्ग पर लगने में सहायक बनू और जो लोग मेरा