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अथ पष्टः सर्गः
समस्त्यमुष्मिन भग्नेऽथ चक्र-पुरं पुनः शक्रपुगतिशायि । यतोऽधरं तन्मधरं किलद्विगजने पूर्णतयाऽनपायि ।।
प्रर्थ-प्रब इसी भरत क्षेत्र मे एक चकपुर नामका नगर है जो कि इन्द्र के नगर स्वर्ग को भी नीचा दिखाने वाला है क्यों कि स्वर्ग पृथ्वीतल पर न होकर प्रधर प्रासमान में है प्रत: वह हलका हो है और यह नगर तो एक पृथ्वी के मुन्दर भाग को घेर कर बसा हुवा है इसलिये सदा निदाष रूप से सुशोभित होता है।
लेखानिगं ना मुमनम्न्धमेति मगनि युद्ध बाधिताऽङ्गनति । रद्धश्रवस्वादनिवर्त्य गजा करोति मम्बीक्षणमङ्गभाजां ।।
अर्थ-जिस नगर का रहने वाला हरेक प्रायमी, जिसका कि वर्णन लेग्विनी से नहीं लिखा जा सकता या जिसका मिलना देव लोगों में भी कठिन है ऐमो उदारता का रखने वाला है। जहाँ को रहने वाली प्रत्येक प्रौरत प्रच्छो रोति और भलो बुद्धि को धारक होती है प्रतः देवियों को भी परे बिठाने वाली है और जिस मगर का राजा लम्बे कानों वाला या यों कहो कि देरी से सुनने वाला न होकर अपनी प्रजा को भली प्रकार देख रेख करता है इस लिये इन्द्र से भी बढ़कर है। नगे न यो यत्र न भाति भोगी भोगो नमोऽम्मिन्न धूपोपयोगी । वृषोपयोगोऽपि न मोऽथ न म्यायथोचरं मंगुणमम्प्रयोगी ।३