Book Title: Samudradatta Charitra
Author(s): Gyansagar
Publisher: Samast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer

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Page 76
________________ ६६ जन्म देनेवाली थी। मुक्ति भूमि जैसे प्रशरोरी लोगों को परम्परा वाली होती है वैसे ही वह भी कामवासना का स्थान थी क्योंकि रसोई जैसे सलोनी होती है वैसे ही वह भी लावण्य सौन्दर्य को भरी थी। मुताऽभान्मम्प्रति सिंहचन्द्र-चरः मुगेऽम्याः मुनरामतन्द्रः । चक्रायुधाग्यो निजधर्म कमण्य पर यद्यः म्बजनाय शर्म ।१४। अर्थ-मिरचन्द्र का जीव जा नवग्रं वेयक गया हुवा था वह वहां मे प्राकर इम गणों के उदर से चलायुध नाम का लड़का हवा जो कि अपने कर्तव्य कार्य में स्वभाव से सावधान रहने वाला था इमलिये अपने पक्ष के लोगों को प्रानन्द देनेवाला भी था । एनप्यजन्मन्यमूकम्य पित्रा महात्मवादारततिः पवित्रा । आविष्कताऽन्यपि पावगैम्नथानिमगान्थिनहर्प मगः ।।१५।। प्रथ जबकि इसका जन्म हवा तो इसके पिताने बहुत ही ठाट के माथ जन्मोत्सव मनाया साथ में उसके सहज हर्ष की उमङ्ग से प्रजाके लोगों ने भी उसमे भाग लिया। समज्जगामन्दग्विारा वृद्धि मुल्लामयन्मोदनिधि जनानां । धाच्याऽनुगगाददिनश्रिया वा धृनः कलावान्प्रभवनम्वमानात ।१६। प्रथं-सन्ध्यारे ममान अनुराग को धारण करने वाली अपनी धायके द्वारा लालन पालन को प्राप्त होता हवा वह बालक चन्द्रमा के समान, अपने कुटुम्बके लोगोंके प्रानन्द समुद्र को बढ़ाने वाला होकर अपने प्राप महज स्वभाव से कलापों को धारण करता हुवा बढ़ने लगा।

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