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अर्थ-बुड्ढे प्रादमो को बुद्धि नई व्याही हुई औरत के समान संकुचित रहती है । उसको धोरता लार टपकने के बहाने से बहकर निकल जाती है । व्यभिचारिणी बोके ममान कट वक्र बन जाया करती है, और जोभ कीचड़ में या चिकने स्थानपर चलने वाली को तरह लड़खड़ाने लगती है।
न कुकवेरिव यम्य पदोदयःमुऋतद्विगलेदशनाच्चयः तनुमनोजरसेन्यमियंदगालगतिपीडयितु यमगट कमा ।।
मर्थ-बुद्धे प्रादमो को जरा के द्वारा ऐपो दमा होजाती है कि-उसको एक पंड भी चलना दुश्वार हो जाता है जैसे कि कुकवि से एक भी शब्द नही बुनना । और उसक दांत पुण्य अंशोंके समान अपने प्राप निकल २ कर गिर जाया करते है तथा यमराज के कोई लगना शुरू होजाते हैं। परिवृतो हरिणा हरिणा यथा जगति देह वगेऽन्तकतम्नथा । कविरेण मृणाल निभा भवन्नपि वलीति यदद धिगिमंन । ६
अर्थ--- प्रारच तो यह है कि दुनिया में मिहक द्वारा पक रे हये हिरण की भांति यह ागरयाग काल : नया जाता है जमे कि यमन के नाल को हा मज में चा जाता है, फिर भी यह संसारी जीव अपने प्राप का बहादर कहता रहे तो इसके इस कहने को प्रकार है। अपि भुवः सकलानि तणान्यदन्ननुपयोगियर्गरम्पाददन । अनुभवन्वलिदायिनमन्तक पग्विददिह कोऽयमजं वकं ।।
प्रयं-जिस प्रकार भूनल के तमाम घाम को ग्वा डालने पाला और किसी भी काम में न प्रानवाने शरीर को धारण करने