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में प्रधान होकर भी मूर्व नहीं था। जो बलवान हो वह कुवलाश्चित अर्थात बल होन नहीं हुवा करता अपितु वर महा बली होकर भी कुवलाश्नितोरस्थल पा-उसके गले में हर समय मोतियों का कण्ठा रहता था। इसी प्रकार वह चोरों का विरोधी होकर भी स्वयं सज्जनोंके चित्तका चुराने वाला था। मा मुन्दरी नाम बभूव गमा वामामु मर्वाधिकाभिगमा । गनाधिगजम्य ग्नीधरम्प नियथाप्रीतिकरीह तम्य ।।११।।
प्रा--राजावों के राजा उम अपराजित के मुन्दरी नामको रागी थी जो कि मंसार की मभी प्रोग्तों में अधिक मुन्दरी थ। इस लिये राजा को कामदेव को गति के समान प्यारा थो। वेश्येव पंचेपरमप्रवीणा दासीय मकर्मविधी धुरीणा । मंत्र मभाया भुवि वाचि वीणा माचिव्य इन्द्रम्य शनीव लीना ।१२।
अर्थ-- इन्द्र को देवी शची के समान वह गणो अपने स्वामी के लिये काम मेवन के समय तो वेश्या के समान सरस चेष्ट करने वाली यो किन्तु उत्तम कार्यों के करने मे दासो के समान हर समय संलग्न रहती थी तथा मभा में गजा को मन्त्रीपन का काम देतो थी जो कि बोलने में वोगाके ममान बड़ी हो सुहावनो यो। गजः मदा मोहक व युनियामाक्तिकोपनिकरीव शुक्तिः। अनंगमन्तानमयीवमुक्ति-म्पनीह लावण्यवतीवभुक्तिः ॥१३।।
प्रथ-युक्ति जिस प्रकार शृङ्खलावद्ध तकरणा को लिये हुये होती है वह रागो भी गजा को मवा मोह पंदा करने वाली थी, सोप जैसे मोती को पंदा करती है वमे वह भी मुक्तिगामी पुरुष को