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प्रथं- जो नक्षत्रों से रहित हो वह सत् प्रर्यात् नक्षत्रों का
मुखिया नहीं होसकता परन्तु वह क्षत्रियों से रहित नहीं था इसलिये सत्पुरुषों का अगुवा हुवा। जिसके पास कोई भी वावित्र न हो वह भली बोरगावाला कैसे हो सकता है किन्तु वह वादियों में प्रसिद्ध नहीं था, सफलवादी था क्योंकि वह प्रयोग यानो चतुर था। जो सीधे चलनेवालों से युक्त हो वह महोन यानी सपका स्वामी नहीं होता किन्तु वह सरल लोगों से युक्त होकर बहुत बड़ा समझा जा रहा था । जो नदीन यानी समुद्र होता है वह जलाशय प्रर्थात् पानी के सद्भाव से रहित नहीं होता किन्तु वह जड़ाशय श्रर्थात् मूखं नहीं था इसलिये कभी भी दीन नहीं होता था ।
रक्तः मन्कर्मणि वन्तु पीतः सुजनदृशा हरितोऽपि बलीत: धवल यश सेन्यनेकवर्णः क्षत्रियवर्णे किलावतीर्णः ॥ ४१ ॥
प्रयं-वह हर समय सत्कर्ममें रक्त रहता था, सज्जनों की दृष्टि से पोत था, भले प्रादमी उसकी तरफ देखा हो करते थे, हरितः यानी इन्द्र से भी अधिक बलवाला था और यशके द्वारा बिलकुल ही सफेद था । इसतरह से वह अनेक वर्गका हो कर भी क्षत्रिय वर्ण में पैदा हुवा था ।
अवलाभिमतो बलवान् समभृद्वहुभूमिपतिः स्वयमेव विभुः सहजेन हि निर्मलवृचिग्यं ममलंचकार धरणीवलयं ॥ ४२ ॥
प्रथं- जो निर्बल लोगोंके द्वारा भी प्रासङ्ग लिया जाय वह बलवान नहीं होता किन्तु वह राजा बहुत हो बलवान था प्रौर