________________
वाल्यं विहायापि विवाहयोग्या लनेव चैत्र भ्रमरेण भोग्या । म्वरूपनः कौतुकभाजि माऽ नवे वयम्यत्र पदं दधार ।२७।
अर्थ-वह लड़को शीघ्र हो बालक पन को उल्लंघन करके विवाह के योग्य होती हुई अपने रूप के द्वारा कौतुक के भण्डार नव यौवन अवस्या को प्राप्त हुई जैसे कि एक लता फूलों के सम्पादक चैत्र के महीने को प्राप्त होती है और भौरे के द्वारा भोग्य बन जाती है।
मम म चकाध भूमिपाल -मतेन तम्या उचितज्ञतातः । व त्रायुधाग्यन महोत्सवेन नकार पाणिग्रहणं पिताऽनः ।२८।
पर्य ---अतः उसके पिता ने उचित समझ कर चक्रायुध राजा के लड़के वज्रायुध राजकुमार के साथ बड़े ही ठाट से उसका विवाह करा दिया। यशोधगयाम्रिदियं य एवा-न्माऽगाद् द्वयोरेतकयो मुदे वा । म एव रन्नायुध इन्यपापं नाम वजन्नान्मजनामवाप ।२९।
मर्थ-यशोधगका जोव जो स्वर्ग गया हुवा था वही प्रा कर इन वज्रायुध और रत्नमाला नाम के दोनों दम्पत्तियों के संयोग से पुत्र पैदा हुवा जो कि मबको प्रसन्न करने वाला हवा और रत्नायुध यह सुन्दर नाम हुवा। पित्रा च पुत्रेण च मादमम्य कालः कियान्व्यत्यचलन्प्रशम्यः । चक्रायुधम्योत्तमपुण्ययोगाम्बीकुर्वतोऽभ्याभवनों मुभोगान ।३०