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मिमानदीनम्य बमप्रणाशान कि शाम्यतां तेऽपधियो दगशा । नागाय किन्तु प्रभवेदिनीदं विनिश्चिनु न्यं भगवद्विलाशात् ।३६
प्रपं-इस प्रकार मुझ गरीब के एन हड़प लेने से तुझ खोटो बुद्धि वाले को दुराशा या कभी शान्त हो सकती है ! नहीं, कभी नहीं। प्रत्युत याद रख मगर भगवान ने पाया तो यह तेरा यह दुष्क तंव्य तेरे गे नाश करने वाला बनेगा। अर्थकदा भूमिम्हापरिस्थितम्य दीनम्बर मम्मिगिष्टा । गनी किलाधीनयनान्यनि.माम्नामितः क.टन एवमुक्तिः ।३७
प्रयं-इमो प्रकार वर रोज ठोक गमय पर पा पर पड़ कर प्रति वोन एवं करूणा जनक म्बर में काम करता था मो इस प्रकार को उसको प्रावाम को गनी राममना ने गना, मानों पाज उसके कष्ट के दिन याम ही हाने पर पाये। गनी गुनकर विचाग्ने लगी।
प्रानष समागन्य नियमेवानिगेदिति । एकनमिति म्यामिन्नविप्न ?नी गर्ने । ३८
प्रयं-पौर गजा मे बोली कि हे, म्यामिन ! यस. प्रवासी रोज सबेरे हो इमो पर पर प्राकर ठोक उमी एक बात को लेकर रोता है, इमलिये है, नाय यह पागल नह है किन्तु... .
विनिधिनामि यकिन हम्यमिह विद्यते । भवनाद्य सभामध्ये स्थानव्यं धीरचेतमा ।३९
प्रयं-इममें कुछ न कुछ रहस्य भगवा है जिसका कि पता लगाना प्रावश्यक है, प्रतः हमको प्राज में खुद जांच कर गो।