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तद्वापिनिष्फलस्वमेवान्व केवलमात्मन्वः । पुनः प्रतिप्रातरिदेव वाणः वभूव भद्रः करुणेकशाणः | ३३
प्रथं भद्रमित्र ने राज दरबार में भी पुकार की परन्तु वहां भी उस बिचारे की माझी भरने वाला कौन था ? इसलिये कुछ फल नहीं हुबा धन्न में यह प्रतिदिन सबेरे के समय नीचे लिखे अनुसार प्रावाज लगाने लगा ताकि लोगों को उस पर दया प्रा जाये ।
श्रीमहनावपिमादा सत्यवीपात्र यशोऽभिवादाः | भवन्ति ते किन्तु उपादि विनाशनायास्ति कुतः कुबादी ३४
अर्थ- वह हर रोज यों कहकर पुकारने लगा कि हे सत्यघोष ! बीमसेन महाराज की तेरे ऊपर बड़ी भारी कृपा है जिससे कि तेरी इस मूतल पर इस प्रकार कांति फैली हुई है और लोग तेरी प्रतिष्ठा कर रहे है परन्तु फिर भी तु इस प्रकार बिलकुल सफेद झूठ क्यों बोलता है, इस मे ना तेरा यश और धर्म दोनों ही एक दिन नष्ट हो जायेंगे ।
हे विप्रराट् ते कृपया नृपस्य समम्नवस्तृवत्र एवं पश्य । तथापि कृष्णा वन नोपशान्तावृत्तिमेवानुकरोति कान्तां । ३५
अर्थ- हे विप्रो के राजा कहलाने वाले ! श्री सिहसेन महाराज को दया से तेरे सब बानों का ठाठ है किसी चीज की कमी नहीं है फिर भी खेत है कि तेरी तृष्णा नहीं मिटी प्रत्युत बढ़ती जा रही है ताकि ऐसी चोरी करने सरीखी बुरी चेष्टा को अपना रहा है ।