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अथाप्ययोध्याधिपतेः सुवल्लभा मनोहराङ्गी सुमिताभिधा व्यभात् । द्विजः समृत्वा समजायताङ्गजा हिरण्वतीव स्मरभूभुजोभुजा | २५
अर्थ- इधर प्रयोध्या नगरी के राजा को प्यारी रानी सुमिता नाम की थी जो कि मनोहर अंग की धारक थी । वह मृतावरण ब्राह्मण मर कर उन दोनों राजा रानी के हिरण्वती नाम को लड़की हुई जो कि कामदेव की भुजा के समान हुई । क्रमाच्च मा वाल्यमतीत्य यवनमत्राप शापादिव पुष्यमात्मनः बनी चित्रशिविज्वरं यथा वसन्तं सुमनोहरं परं । २६
अर्थ- वह गायक समान अपने बालकपनको उल्लंघन कर के पुष्प के समान खूब हा सुहावने योजन को प्राप्त हुई जैसे किवनी पत्तों से रहित होनेवाले शिशिर काल को पार करके फूलों में लबे हुये वमनको स्वीकार करती है ।
पदनाधीश्वर पूर्णचन्द्रतः महाभवन् पाणिपरिग्रहन्वतः यथा सुराणामधिपन सौख्यदः पुलोमजाया मृदुरूपसम्पदः । २७
अर्थ- इसके बाद उस सुन्दररूपकी धारक हिरण्वती का
हुवा जो दि मुख बेन
विवाह पोदनपुर के राजा चन्द्र के साथ घे वाला हुवा, जैसा कि इन्द्राणों का इन्द्रकेसाथमे ।
माधुरी सुता तयोरिदानी गुणरूप संस्तुता
पिता पतिः श्रीतुमुनानतो जनी जनन्यहि प्रभवेद् मवाध्वनि । २८
प्रयं - हे माता जो उम मृगायरण ब्राह्मण की प्रोग्त मधुरा
यी वही तूं प्राकर पूर्णचन्द्र राजाके रालो हिग्ण्वती की कुल से