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करमे से कमजोर हो चुका पारसलिये ही वह वहां से वापिस निकल नमका । एवं उचित ममझ कर धर्मभावना से उसने समाधिधारण करलो।
मन्यघोषनरः मपों योऽवजच्चमणतां अहिनां पुनरागावा दष्टवान मम्नकेऽमुकं ।३५।
प्रयं- मायघोष का जीव सर्प होकर जो चमर मृग हुवा था वह मरकर फिर मपं हवा और उमोने प्राकर इमको माथे में काट वाया।
शान्तिनम्नन मुत्सृज्य महामाग्म्य म द्विपः गविप्रभव्योम याने श्रीधरत्रिदशोऽभवत् ।।३।।
प्रय-किन्तु उस हाथीने अपने परिणामों को नहीं बिगाड़ा, शान्तिक माय सागर का परित्याग किया जिससे कि सहस्रार स्वर्ग के विप्रभ विमान में श्रीधर नाम देव हुवा।
मारितः किल धम्मिल-चरेण कपिनाप्यहिः नीयं नरकं प्राप गध्यानवशंगनः ।।३७।।
प्रथं--इधर धम्मिलमन्त्री का जीव मरकर जो बन्दर एवा पा उमने प्राकर के उम मपं को भी मार डाला जो कि रोट परिणाममे मरा इमलिये तीसरे नरक में गया। व्याधेन तम्य धनमित्र उपन्य मुक्तादंनी न नाउपजहा नृपाय युक्ताः म्बट वापदानि दनः कुबलेस्तु हा पूर्णेन्दुगत्मनिगले स्वयमुद्दधार ।३८