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मर्ग-व्याधने उस हापोके तो और मस्तकों के मोती निकालकर लेजाकर धनमित्र सेठ को बेच रिये जिन्हें लेकर सेठने राजा पूर्णचन्दको भेट कर दिये जिनमें से पो दांतों से तो राजाने अपनी स्वाट के चारों पाये बनवा लिये हैं और उन गजमुक्तामों का हार बना कर उसने अपने गले में धारण कर रखा है।
अप्रमादिनया पूर्ण नन्दम्याहादकारिणः नमोमथनमित्येतत्कथनं मातरिष्यते ।।३।।
है. माना ! प्रसन्नता को देनेवाले पूर्णचना का अन्धकारको दूर करने वाला पर कयन है जो कि मेने तुझे मावधानो के साय सुनाया है।