Book Title: Samudradatta Charitra
Author(s): Gyansagar
Publisher: Samast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer

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Page 49
________________ महीमा पापिधुरं च दण्डितं विधाय धम्मिल्लपमान्य मान्मनः । चकार शिष्टस्तवने न निग्रहो दीहिनम्यति नया जीवनं ।। प्रथ-पौरपापियों में प्रधान उस सत्यघोष बामगको कठोर दण्ड देकर उसके बदले में धम्मिल्ल नाम के प्रावमो को राजा ने अपना मन्त्री बनाया, सो ठोक हो है, शिष्ट पम्पों का प्रावर करने के साथ २ दुष्ट का निग्रह करना हो राजामों के जोवनका मू । है । अनोऽपमानादतिदुःखिनोमही मुरः परित्यज्य तनु वभावहि: । महीशकोपम्थल आत्त भावनः मनुप्यना निष्फलतां गता वन ।।५।। प्रर्थ ---राजा के द्वारा इस प्रकार अपमानित होने के कारण सत्यघोष ब्राह्मण को बहन होदया हवामानावर चिन्नातर होकर मरा और इसी राजा के भगदार में पाना। प्रायं तो यह कि उमने अपने मनुष्य जन्म को बेकार या दिया । अथामनाम्पानानत म्यतं निपय भद्रावधमकं यति । तदीयवाचामनमाभवन शनिः म दानधम तयान नामनि ।६। प्रयं-प्रब इघर भद्रमित्र ने एक दिन प्रामनाभिधान वनमें प्राकर ठहरे हुये वरधर्म नामक मुनि गज के दान किये प्रोर उमान जो सदुपवेश दिया उममे उसके मन में पाले में प्रोर मा प्रधिक सन्तोष प्रागया, प्रतः प्रम पर अपनी मापन का बिन वोन कर दान करने लगा। निरीक्ष्य मानाऽम्य च दानमनितां निपचयामाम दगहिनाश्चिना । नथापि यम्याभिमचियतो मवेनिवारने कि ग्यन्नु मा जवंजवे ।।

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