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ननोऽहमप्यमि ममर्जनाय वित्तम्य पापप्रतिवर्जनाय । भवाननुज्ञा प्रकीविदानीमहन म के मालपूनिजानिः ।।४।।
प्रपं-बम यही मान मोच कर मेग विचार होगया है कि मै बगई मे बचने और धन कमाने के लिये परदेश जाऊं. प्रतः पय पाप माना करें प्रोर मय भला करने वाला भगवान महंन है।
नम्म पिता प्रत्यवदन मति महानं में मतगमदेति । कायोऽस्निकुन्यामग्वे यथाऽकिजगम पाथीनिधये तथा कि । ५
प्रयं--- हम पर पिताने उना दिया कि पुत्र भोला है, जरा मोच तो महो कि महम्पन के लिये जिम प्रकार नार बनाई जातो है उसी प्रकार ममुर के लिये भी उसके यनाने की पावश्यकता होती है, क्या ' नियोंकि वहां तो खुद हो नदिया प्राकर सबाला उमे भर रही है। इसी प्रकार मेरे तो माम हो इतनी प्राय है कि जिसे कोई खाने वाला नहीं, फिर कमाना कंमा ? एकाकि पवाङ्गन ! में कुलाय : म्वयंत्रमानन्दराऽनपायः । दुम्बायने मद्यमिदं वचन किमाम यानं गुणमंत्रशम्ते ।।६।।
प्रपं-हे पुत्र पभि को घोंमले के ममान मेरे कुल का प्राधार तो तू एक हो है जिम को कि में देख करके हो रामो हो जाना हूं जिम पर भी तू अभी एक दम मोधा है, तेरा परदेश जाना कंसा? वह तो प्रभी बहुत दूर है, हे गुणों के भणार प्रभो तो यह तेरे परदेश जाने को बात ही मुझे काट देती है।