________________
फिर भी अगर पाप कहें तो हम ग्युर इस पर चढ़कर देखले कि कंमा पया है।
क्रमशः मलंग्यात्मनप्तकमास्ट नया निपातनं । मनुभूतमतः समुन्धितं परि कोलाहल मा निवेदितं ।२४
प्रयं-ऐसा कहकर वे लोग क्रमश: एकेक करके चढ़े किन्तु जो भी उस पर चढ़ना या वर धड़ाम से नीचे गिर जाता या जिस में कि नगर में कोलाहल मच गया जो कि राजा के पास तक पहुंच गया।
ममवेय ममेन्य नीमजा पुनरंगवणनामभुजा । भगवन मनानिपरक प्रधना वाजि अमृदिहानकः ।२५
प्र-जिमको मुनकर वह नोरोग शरीर का धारक ऐरावरण रामा भो वहां प्रा पहुंचा और भगवान को नमस्कार करके उसने भी उस घोड़े पर सवारो को तो उसके चढ़ते हो वह घोड़ा एक साय सोपा हो गया।
इति वीक्ष्य मदोदयान्वितं ममुवाचागत आत्मनोहितं । नग्नायक ! मम्बदाम्पहं भवनंऽम्मतनयापरिग्रहम् ।२६
प्रयं-इस प्रकार पाये हुये उस महा कच्छ ने ऐरावरण राजा को बहुत पुण्यवान देखा तो उसने उससे अपने मन की बात कही कि है नर नाप मे चाहता हूँ कि माप मेरो लड़की का चलकर पाणिग्रहण करें।