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प्रयं- - उस राजा का नाम एंव है जो कि हाथियों में इन्द्र के हाथों ऐरावाकी समान सब राजावों में मुखिया है जो कि निर्मल खिल का धारक है और ऐरावण हाथो जिस प्रकार बहुत मा मदमाता है बसे हो वह राजा भी बड़ा दान देनेवाला है ।
मरमा मित्राधिका ललनानामयुतानि षट् पुनः । दधतोऽपि शीवत्रिणीतिक तनुजा ममस्तु नः । १७
प्रयं-- यह हम लोगों की बाई उन यह हजार घोरतों के रखने वाले सूपति को भी बंसी प्यारी होगी जैसी कि बहुत सी मरायों से युक्त देवराज को शची होती है।
तुग्गेण समायिना पुनस्तमिहानेतुमगाव प्रयत्नतः । किमभीष्टसमागमाय नो स्थितिस्तामवनां वपुष्मतः । १८
प्रयं-इसके बाद महाकरुद्र राजा ने एक मायामय बनावटी घोड़ा लेकर उसके द्वारा उनकी परीक्षा करके प्रयत्न पूर्वक उसके यहां जाने के लिये गमन किया सो ठीक हो है क्योंकि इस भूमण्डल पर शक्तिशाली होता है वह अपने प्रभीष्ट प्राप्ति में देर नहीं करता ।
जलवेस्तटस्थितं पुरं स तदीयं समुदीक्ष्य सुन्दरं । सुरपचतोऽपि संस्तुवन्महमाश्चर्य ममन्वितोऽभवत् । १९
अर्थ-उसने समुद्र के किनारे पर जाकर वहां पर बने हुये उस ऐरावण राजा के पुरको देखा तो उसे स्वर्ग से अधिक सुन्दर पाया अत: वह एकाएक अचम्भे में भर गया ।