Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य आकृति वाले. पञ्चेन्द्रियजन्तवः = पंचेन्द्रिय जीव. संसारे = संसार में, (वर्तन्ते = विद्यमान हैं), ये च = और जो, भव्यराशेः भागात् = भव्य राशि के हिस्से से. तत्र = सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र पर, उत्पन्नाः = उत्पन्न हुये हैं. (ते = उन्हें), उपर्युक्ताः भाविशिवाः = ऊपर कहे गये ४६ भवों के भीतर मोक्ष जाने वाले), गणितव्याः = गिन लेना चाहिये, तत्र = वहाँ अर्थात् सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र पर, अन्येषां = अन्य जीवों का,
उद्भवः = जन्म, न = नहीं, (भवति = होता है)। श्लोकार्थ - केवलज्ञानी स्नातक मुनिराज ऐसा कहते हैं - "भव्यराशि का
कोई भी, कैसा भी पापी जीव सम्मेदशिखर पर ठहरता है या बैठता है तो ४६ भवों के अन्दर ही वह मुक्त हो जाता है। इस संसार में एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों में, जो नामकर्म की विभिन्नता से अनेकानेक आकृति वाले हैं, वे भव्यराशि के भाग से वहाँ अर्थात् सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र पर उत्पन्न होते हैं वे निश्चय ही उनचास भवों के भीतर मोक्ष जाने योग्य भध्यजीव हैं। भव्य राशि से अन्य जीवों का वहाँ
जन्म ही नहीं होता है। क्षारं क्षीरं खनौ प्रोक्तमिष्टं मिष्टं खनौ जलम् । रत्लानामेव सम्भूतिः तथा धातुः खनौः स्मृतम् ।।२६।। तथैव जीवः संसारी ये भव्याः कर्मबन्धनात् ।
भूम्यां तदाकरीभूतः सम्मेदाख्यो नगेश्वरः ||३० ।। अन्वयार्थ - (यथा = जैसे), खनौ = खान में, क्षारं = खारा, क्षीरं = जल,
(क्वचिच्य = और किसी), खनौ = खान में, इष्टं = अभिलषित, मिष्टं = मीठा, जलं = पानी (भवतीति = होता है. ऐसा) प्रोक्तम् = कहा जाता है, तथा = वैसे ही, खनौ = खान में, रत्नानाम् एव = रत्नों की ही, सम्भूतिः = उत्पत्ति, (भवति = होती है), धातुः (च) = और धातु (अपि = भी) (भवतीति = होती है ऐसा), स्मृतः = स्मरण किया जाता है।