Book Title: Sambodh Prakaranam Author(s): Haribhadrasuri, Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 8
________________ संबोध मप्रकरण: ववहारे पुष पढवं पहडिओ मूलनायगो ऐसो । अवनिजइ सेसाब मारममावो न उण वसि ॥६॥ जम्हा सिद्धसहावो तुल्लो सव्वेसिमित्थ उषयारो। अत्तष्पभूतिमत्ती कियो मियो सरइ अहवा ॥६५॥ तम्हा बंदणपूयण बलिमुहेसु एगस्स कीरमाणेसु । आसायणा न दिठा उचियपवित्तस्स पुरिसस्स ॥६६॥ जह मिम्मयपडिमाणं पूया पुष्फाइएहि खल्लु उचिया । कणगाइनिम्मियाणं उचियतमा मज्जणाई वि ॥६॥ कल्याणगाइकज्जा एगस्स विसेसपूअकरणे वि । नावन्नापरिणामो जह धम्मिजणस्स सेसेसु ॥६८॥ उचियपवित्ती एवं जहा कुणतस्स होइ नायब्बा / तह.मूलबिंबपूषा-विसेसकरणेवि तं नत्थि ॥६९॥ बिणभवणबिंबपूया कीरंति जिणाण नो कए किंतु । सुहभावणानिमित्तं बुहाण इयराण बोहत्थं ॥७॥ चेहरेण केइ पसंतस्वेण केंद्र बिंबेण । पूयाईसया अन्ने अन्ने बुझेति उवएसा ॥१॥ जहमच्छाइण मझे दठूमागारमसरिसं केइ । जाइं सरांत मणुया बुझंता तो किमच्छरियं ॥७२॥ जह अद्दकुमरमिच्छो अपइट जिणस्स पडिबिंबं । दणं पडिबुद्धो किं भणइ इयरसन्नीणं ॥७३॥ मुच्चइ दुग्गइ नारी जंगगुरुणो सिंदुवारकुसुमेहिं । पूयापणिहाणेहिं उप्पन्ना तियसलोयंमि ॥४॥ उवसमइ दुरियवग्गं हरइ दुहं जणइ सयलर काई । चिंताईयंपि फलं साहइ पूया जिणिंदस्स ॥५॥ पुप्फेसु कीरजुयलं गंधाइंसु विमलसंखवरसेणा। सिववरुणसुजससुष्वय कमेण पूआइयाहरणा ॥६॥ अन्नो मुख्कंमि जओ नस्थि उवाओ जिणेहिं निद्दिडो । तसा दुहओ चुक्ता चुक्का सव्वाण वि गइणं ॥७॥ विहिपूया साहेइ सग्गफले सिवफळ परं पारं। अविहिंकया कुगइफळे साहइ निस्सूगचित्ताणं ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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